साहित्य धरोहर

साहित्य धरोहर

Friday 20 January 2017

बॅटवारा - जिस घर में बटवारा हो जाता है

बॅटवारा

जिस घर में बटवारा हो जाता है
प्राणी प्राणी बंजारा हो जाता है

हो जाता है प्यार एक सपने जैसा
व्यक्ति स्वयं का हत्यारा हो जाता है

किस तरह की भावना में आज हम बहने लगे
हम नहीं हैं एक, अब तो लोग  कहने लगे

एकता की मीनारें खड़ी की हमने 'नसीर '
उसके गुम्बद ही अचानक किस लिए ढहने लगे

घर में खड़ी एक दीवार है आई है बॅटवारे की
तोड़ उसे जोड़ो दिल प्यार है अपनाने की

- मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

वतन - कुछ लोग आज वतन तोड़ रहे हैं

वतन

कुछ लोग आज वतन तोड़ रहे हैं
अपने ही पैरों की ज़मीं छोड़ रहे हैं

कुछ लोग चाहते हैं ऊँचा रहे मस्तक
कुछ लोग देश का गाला मरोड़ रहे हैं

कुछ लोग लहू बूँद -बूँद रहे जमा
कुछ हैं जो लगातार ही निचोड़ रहे हैं

कुछ लोग एकता की कोशिशों में लगे हैं
कुछ हैं जो मुल्क तोड़ फोड़ रहे हैं

आओ 'नसीर' मिलकर उनका हाथ पकड़ लें
चुपके से जो की भारत की जड़ें गोड़ रहे हैं

- मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी'

मेरा दिल यूँ न दुखाने की कोई बात करो

मेरा दिल यूँ न दुखाने की कोई बात करो
प्यार में यूँ न सताने की कोई बात करो

ले उड़ा सुए-फलक प्यार तुम्हारा मुझ को
आसमां से न गिरने की कोई बात करो

मेरे हाथों की लकीरों में बसे हो जानम
तुम न यूँ उनको मिटाने की कोई बात करो

किस ने देखे हैं यहाँ यार मेरे सातों जनम
इसी जनम में निभाने की कोई बात करो

तुम को चाहा है, फकत, तुमको चाहेगी 'निशा'
भूलने की, न भूलने की कोई बात करो

- डा. नसीमा निशा 

औरत - गीली लकड़ी सी सुलगती है औरत

गीली लकड़ी सी सुलगती है औरत
न जले न बुझे धुँआ होती औरत

कब तक जले, कब तक सहे  ये
ख़ुदा से सवाल ये करती औरत

हर ग़म सहे , कुछ भी न कहे
बच्चों को देख मुस्कराती औरत

घर उसका अपना नहीं कहीं भी
मगर नीव की ईंट बनती औरत

निशा अपने सपने भुला कर
सब के सपने सजा देती औरत

- डा. नसीमा निशा